इकतरफा इश्क.....

मेरी शायरी से मुतास्सिर था वो इसलिए उर्दू सब्जेक्ट चुना था उसने अपने पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए और जान बूझकर मेरे
ही कॉलेज में मुझसे पढ़ने आया था वो ऐसा उसने खुद मुझे बताया था पहली क्लास में इंट्रोडक्शन के दौरान ये तो मुझे.....
मालूम था कि इंटरनेट पर मेरी शेर ओ शायरी को पसंद करने
बालों की लंबी लिस्ट है लेकिन कोई लड़का इस तरह मुझको
ढूंढते हुए खुद मुझको ही पढने आ जाएगा कभी सोचा नहीं था.....
हैरत भी थी और एक अजीब सी खुशी भी शायद, मैं खुद समझ नहीं पा रहा था कि आखिर ये है क्या?
खैर पूरी क्लास में इस बात को ज़ाहिर करके वो लड़का मेरी
नज़र में चढ़ तो ज़रूर गया था यही कोई तकरीबन  17
बरस का था चेहरे पर संजीदगी लिए बड़ी बड़ी नीली आंखे
और साफ रंगत वाला, उसका नाम भी बड़ा खूबसूरत सा था
"आजेहा” उसी तरह उसका नाम भी जुदा सा था कुछ
तो बात थी उसमें के मेरे ज़हन के किसी कोने में ठहर सा गया था वो

तकरीबन १० बरस से मैं उर्दू का प्रोफेसर था अपने कॉलेज में....
हमेशा से स्टूडेंट्स के साथ संजीदा लेकिन दोस्तों के साथ
खुशमिजाज़ रहना मेरी आदत थी
कभी भी ऐसा नहीं हुआ
था के किसी भी स्टूडेंट्स के साथ क्लास के बाद या पढाई के
अलावा कोई राबता मैंने रखा भी हो।

लेकिन ये लड़का शायद मेरी ज़िन्दगी में उथल पुथल मचाने
को ही आया था | तभी क्लास के बाद भी मुझे ढूंढते हुए मेरे
डिपार्टमेंट में आ धमका सालाना जलसे में एक play करने
की मुझे ज़िम्मेदारी मिली थी ये बात पता करके वो play में
role मांगने आया था।

मुझे फिर हैरत में डाल गया था वो, मैं भी अजीब कशमकश
में था, उसको मना नहीं कर पाया बल्कि, play में उसको
role दे दिया मैंने इस बहाने अब वो रोज़ क्लास के बाद मेरे
सामने आने लगा, मुझसे बाते करने के मौके तलाशता।

उसका आना मुझे अच्छा लगने लगा था, मेरी टेबल तो करीने
से लगाता था वो और मुझे चाय भी बना के पिलाने लगा था,
जैसे मेरा ख्याल रखना उसका फ़र्ज़ हो, ऐसे वो मेरी जिंदगी में
दाखिल हुए जा रहा था।

मैं चाह कर भी उसको नज़रंदाज़ नहीं कर पा रहा था| अक्सर
तन्हाई में जब उसका ख्याल आता था तो ये सोच के झटक
देता था के एक स्टूडेंट और टीचर के बीच कोई ताल्लुक पढाई
के अलावा नहीं होना चाहिए, और तो और वो मुझसे उम्र में
भी काफी कम था, तकरीबन १२ साल छोटा था वो मुझसे

पर उसका रोज़ मेरे पास आना, मेरा ख्याल रखना, मुझे मेरी
खुद की बनाई हद लांगने पर मजबूर कर रहा था मुझे ये.....
नहीं मालूम था के वो ऐसा क्यू कर रहा था, क्यूंकि उसने
कभी कुछ लफ़्ज़ों से ज़ाहिर नहीं करा था, लेकिन वो जो कुछ भी कर रहा था, उससे  मुझे ये एहसास ज़रूर हो रहा था के
उसकी ज़िन्दगी में मेरी काफी एहमियत है।

दिन यूँ ही बीतते गये, तकरीबन ६ महीने हो चुके थे इस
सिलसिले को, और अब मेरा दिल बे इख्तियार हो चूका था,
मुझे अजीब सी कैफियत होने लगी थी, मैं उससे दूर भागना
चाहता था, क्यूंकि मैं अपने दिल को काबू में करने की तमाम कोशिशे कर चूका था, लेकिन मेरा न मुराद दिल उसकी और खिंचा जा रहा था|

इक रोज़ मैंने इरादा कर लिया के आज तो मैं, उसको बोल ही दूंगा,
के मेरे दिल में उसके लिए एहसासात जाग चुके हैं, मेरे
लिए वो special है, और ये बात कहना अब बोहत ज़रूरी ।
हो चूका है इसलिए मैं कह रहा हूँ, लेकिन अगर उसके दिल में
चाहत नहीं है तो कोई बात नहीं मेरा दिल बगैर कहे अब नहीं रह सकता था इसलिए मैंने कहना मुनासिब समझा।

दो चार दिन इसी टेंशन में रहा के कैसे ये बात उस तक पहुँचाई जाये|
मैं प्रोफेसर वो स्टूडेंट ऐसा कभी नहीं होता था के ।
डिपार्टमेंट में हम दोनों अकेले बैठे हों, इसलिए काफी सोचने
के बाद एक रोज़ सुबह मैंने एक audio रिकॉर्ड करा अपने
मोबाइल पे जिसमे मैंने अपनी सारी बेकली बेक़रारी और
उलझन बयां करदी, साथ ही ये भी कह दिया के अगर वो
accept नहीं करता है मेरी चाहत तो कोई बात नहीं

रिकॉर्ड करने के बाद मैं कॉलेज पहुंचा और उसके आने का
इंतज़ार करने लगा, हमेशा की तरह वो आया और जैसे मेरा ख्याल रखता था सब वैसे ही कर रहा था, क्यूंकि हम तनहा नहीं थे इसलिए समझ नहीं रहा था के उसको audio कैसे
सुनाऊ

जब मैं घर के लिए निकलने लगा तो मैंने उसको आवाज़ देके गेट पे बुला लिया, और उसको मोबाइल पे अपना audio on करके headphones लगा के सुनने को बोला| उसने
थोड़ी हैरानी से मेरी और देखा फिर फर्माबरदार बच्चे की तरह headphones लगा के सुनने लगा| जितनी देर वो सुन रहा
था मेरा दिल ज़ोरों से धड़क रहा था जैसे तैसे वक़्त गुज़रा
और वो ५ minute की audio ख़तम हुई होगी लेकिन वो
अपनी जगह से हिला ही नहीं, जहाँ बैठा था जैसे बैठा था,
बस बैठा ही रहा, जैसे मानो अभी भी audio चल रहा हो।

मैंने घडी देखि तो मुझे यकीन हो चला था के audio ख़तम
हुए कुछ वक़्त गुज़र चूका है, तो मैं धीरे से उसके नज़दीक
पहुंचा उसको पुछा, “सुन लिया न?" वो नज़रे झुकाये बैठा
था, कुछ नहीं बोला| मैंने फ़ोन उसके हाथ से ले लिए, फिर
कहा, “कुछ कहोगे?"

वो धीरे से बोला, "मेरी कुछ समझ नहीं आया"

उसकी ये बात मुझे समझ नहीं आई थी, मेरा दिल बेसाख्ता
धडके जा रहा था, मेरा खुद पर से इख्तियार न छूट जाये मैं
बस वहां से तुरंत निकल जाना चाहता था, इसलिए मैं सिर्फ ये
कह के चला आया, बस... इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं कह
पाउँगा, अब तुम सोच के बता देना”

वो वही बैठा रह गया और मैं खुद की रूह शायद वहीं छोड़ के आगया था .......

इतनी बेचैनी, इतनी कैफियत, के उफ़... बयां करना मुश्किल
था, रस्ते भर मैं किस अज़ीयत से गुज़रा मैं ही जनता हूँ।

दिमाग जैसे काम करना बंद कर चुका हो, बस दिल हावी था..
"वो क्या सोच रहा होगा? ये मैंने क्या किया? क्या मैंने ग़लत
किया? क्या सही किया बता कर? उसने ऐसा क्यूँ कहा, के
मुझे समझ नहीं आया? क्या वो समझा नहीं? या न समझने
का बहाना कर रहा है? मैंने तो साफ साफ लफ्जों में अपनी
बात रख्की थी फिर वो क्यूँ नहीं समझा? कहीं उसने इसलिए
तो ये नहीं कहा के मैं बुरा न मान लू अगर वो इंकार करे तो?"

जाने कितने सवाल मेरे ज़हन में हल्ला मचाए हुए थे, मेरे दिल
में तूफ़ान उठा हुआ था, सांसे तेज़ थी, और पसीने से मैं तर

घर पहुंचा तो हमेशा की तरह चेहरे पे मुस्कराहट आज नहीं
थी, बल्कि अजीब उडा उड़ा सा मैं घर में दाखिल हुआ था।
मुझको मेरी हालत का एहसास मेरी माँ ने कराया, ये पूछ कर
के, "क्या हुआ बेटा, आज तबियत नहीं ठीक है क्या?"

मैंने उनके सवाल को टालते हुए हाँ में सर हिला दिया था।
और चुप चाप अपने कमरे में जा के लेट गया था। इसी सोच
|में गुमसुम कब मैं नींद के आगोश में चला गया मालूम नहीं।

माँ ने भी मुझे ये सोच के नहीं उठाया के शायद मुझे थकन हो।
गयी है और सो के मेरी तबियत बहतर हो जाएगी।

शाम तकरीबन ६ बजे मगरिब की अज़ान से मेरी आँख
खुली आँख खुलते ही फिर उसका ख्याल हावी हो गया,
"उसने क्या, सोचा क्या" कहा ये जानने के लिए मोबाइल
की स्क्रीन पे हाथ फेरा तो देखा उसका एक sms पड़ा था|
लिखा था "आपकी बात का जवाब आपकी ईमेल पे भेजा

मैंने फ़ौरन ईमेल के icon पे क्लीक किया, देखा उसके
मेसेज के साथ एक अटैचमेंट था, इमेज फाइल थी, बगैर कुछ।
सोचे मैंने उसपे क्लीक कर दिया, ५ सेकंड लगे होंगे उसको
डाउनलोड होने में लेकिन ये ५ सेकंड ५ बरस जितने थे उस
वक़्त इमेज खुलते ही मेरी नजरो के सामने दो चेहरे थे,
एक वो था और उसके साथ एक उसी की उम्र का नौजवान।
तस्वीर देख के सब साफ हो गया था, बगैर सुने बगैर कुछ
बोले, मेरी बात का जवाब दे दिया था उसने|

मैं निशब्द काफी देर तक उस तस्वीर को ताकता रहा। मेरे
दिल में अजीब सन्नटा सा पसर गया था| ज़हन में अँधेरा फैल
गया था और जुबां खामोश थी| कोई लफ्ज़ कोई ख्याल कुछ
भी नहीं आ रहा था|

काफी देर बाद जब हवास वापस आए तो ईमेल के रिप्लाई बटन पर क्लीक किया और लिख दिया,
Its OK...I am
Happy for You!"
और ये पुख्ता करने के लिए के मैं वाकई में खुश हूँ एक smiley भी ऐड करदी  sent बटन पे क्लीक
करके मैं फिर लेट गया... और बस अपने खुदा से एक सवाल
किया... के “अरसे बाद ज़िन्दगी में मुहब्बत लानी ही थी तो
इकतरफा क्यूँ...??"

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