आखिरी सफ़र

जग जाओ न अब। आधे घंटे से तुम्हारे खर्राटे सुन रहा हूँ...
निखिल ने ईयरफोन की माइक ठीक की और नींद से भारी पलकों को खोल मोबाइल में समय देखा सुबह के आठ बज रहे थे

"उठ जाएंगे बाबू अभी तो सोये हैं, अलसाई सांसो से भरी
खामोशी की एक अंतराल के बाद विकास ने कहा "

प्लीज जाग जाओ  ट्रेन है दस बजे से। निखिल  ने हठ किया......
मगर इस से बेअसर विकास शोख हुआ,"जग जाएंगे,
अगर तुम प्रोमिस करो यहाँ से जगाओगे तो अपने पहलू में
सुलाओगे?
उसकी उन्नीन्दी सांसे निखिल के रगों में सिहरन उलीच रही थी।
पर उसने बनावटी गुस्से में कहा
"बस करो मुझे पता है तुम पहलू से निकलोगे तो कहाँ कहाँ
बहकोगे
"अरे आपकी जवानी, महुए का पानी। हम कैसे न इधर उधर
बहकें," विकास आसानी से मानने वालों में से नही था।

"ठीक है फिर तुम देखो कैसे महुए की पानी,नीम की पानी
बनता है। टिकट कैंसिल कर रहे हैं तुम्हारा अकेले आना",निखिल ने फोन रख दिया, सच में देर हो रही थी ।

फोन कटने के साथ विकास ने घड़ी देखा साढ़े आठ बजे गए।
थे। वो टॉवल लिए बाथरूम भागा।

कॉलेज जब शुरू हुआ था तो सीधा साधा मूरत लगता था
निखिल का ठहर ठहर के बोलना और खुद में खोये रहना ही उसका
शगल था। ऐसा लगता था एक सन्नाटा गुजरा है उससे होकर
और वो उससे उबर नही पाया हो। पर कॉलेज में आने पे इस
शून्यता और सन्नाटे की बर्फ़ पे जाने अनजाने कोई ताजे पानी
की फुहारें मारने लगा था। माइनस सोलह डिग्री सेल्सियस
जीरो डिग्री सेल्सियस की गर्मी से पिघलने लगा था।

क्लास में जब वो बैठता तो पीछे के बेंच से एक झीनी सी छन
की आवाज आती और उसकी आँखें खुद ब खुद उधर खींची
चली जाती। एक लड़का बैठता था, अंत की पंक्तियों में, कसी
पैंट और कमर के नीचे शर्टिंग हुई शर्ट पहने। उसकी कलाई में
मोटे चेन की घड़ी और ब्रेसलेट थी।अक्सर लिखते लिखते
जब वो थकता तो हाथों को जुम्बिश देता फिर ब्रेसलेट और
घड़ी आपस मे छन की आवाज से आवाज से टकराते।
आहिस्ते आहिस्ते यह आवाज उसकी कमजोरी बनती चली
गई। छन की आवाज पे मुड़ जाना एक अनकही रीत बन गई
उसकी।

बदस्तूर दिन महीने बीत के साल होते गए। वो लिख के थकता
रहा, कलाई हिलती रही छन्न की आवाज आती रही वो मुड़ता
रहा मगर उससे आगे कुछ न हुआ।।
न वो पहल करता न ये राब्ते की कोशिश। शायद दोनों को
ज्ञात था कि मिलना उनकी नियति है। इसलिए वो चुप थे
कोई जल्दबाजी नही था।
समय आया, वो मिल भी गए और रफ्ता रफ्ता आहिस्ते
आहिस्ते और घुलते गए एक दूसरे के रंगों में । ये मिलन
प्राकृतिक था मानवीयता रत्ती भर नही था इसमें । न कोई
बनावटीपन।

निखिल ने एक बार पूछा भी था क्या तुम मुझे कभी ऐसे इजहार
(प्रपोज) नही करोगे? जैसे और लोग करते हैं? जैसे फिल्मों में
करते हैं?
तब उसने कहा था अगर हिंदी में मुझे," तुमसे प्यार है,
इंग्लिश में "I LOVE YOU"
कह देना ही प्रपोज है तब तो कतई नही। इजहार आंखों से
झलकना चाहिए और लहजे से गुज़र दिल में उतरते चले
जाना चाहिए।
वो चुप हो गया उसकी गहरी बातें अक्सर चुप कर देने वाली
होती थी।
उसका एक ही सिफत था, फ़क़त इश्क़, फ़क़त इश्क़, फ़क़त
इश्क़, सिवाय इसके कुछ भी नही
वो जो भी कहता वो इश्क़ था, जो भी करता वो इश्क़ था।
उसके सामने आते वो ऐसे लगता जैसे नवरात्रि में उड़हुल
फूल; साधारण पर, सबसे ख़ास,सबसे विशिष्ट, सबसे जुदा,
सबसे अलहदा।

वो समझ नही पाता उसे महसूस कर के वो क्या हो जाता। यूँ
लगता जैसे वो हवा में उड़ता हल्का फुल्का सोनचिरैया हो जो
बस नभ में विचरते जा रहा हो पंख फैलाये।
बचपन से ही उसकी माँ नही थी। उदास खोए खोए रहना
उसके जिंदगी की रवायत हो गई थी मग़र विकास ने सब
बदल दिया था। जिंदगी प्रेम के नाजुक सुरों में गूंथ दी थी।
उसने।
वो उससे प्रेम करता और उसे आह्लादित कर देता।निखिल के
पास देने के लिए कुछ नही बचता। वो चुप बस उसे निहारते
रहता। कितना मजबूत और खुशमिजाज था वो ।
कभी कभार साथ घूमते वक्त जब वो अपना हाथ उसके कंधे
पे रखता तो ऐसा लगते मानो वक्त ने सिमट के उसके कंधे पे
ठौर ले लिया हो। उसके प्रेम में वैराग्य था। जिस्म नगण्य था
रूह प्रधान थी।। इतना मुहब्बत पाकर वो डर जाता उसे कभी
इतना प्रेम अपने जीवन मे नही देखा था।

अगले तीन साल ऐसे बीते की कभी महसूस ही नहीं हुआ
साल में 365 दिन होते हैं।
उसके संगत में वो कब सीधी साधी मूरत से बातूनी चंचल
मशीन होता चला गया पता ही नही चला।
पढ़ाई ख़त्म हो गई अब जॉब की बारी थी। उसे जॉब नही
करना था।
विकास का कैम्पस प्लेसमेंट हो गया था
कॉलेज से जाने में तीन दिन बचे थे। वो निखिल  से मिलने आया
।। बातें होने लगी निखिल  ने पूछा
अब बताओ अपने फ्यूचर का क्या होगा शादी करोगे
मुझसे?
वो बस मुस्कराया फिर छेड़ते हुए बोला,"नही ,बिना शादी
किये दर्जन भर बच्चे होने का कोई तरीका हो तो बताओ वहीं
करेंगे।

"धत पागल" निखिल  ने हंसकर उसे मुक्का मार दिया। दोनो।
हंसने लगे।
उसने बताया कि वो पापा से बात करेगा।
और अपने होस्टल चला गया निखिल  बाहर रहता था वो अपने
फ्लैट चला आया।
रात के दस बजे निखिल  ने कॉल किया तो उसका फ़ोन व्यस्त
जा रहा था। ग्यारह बजे भी व्यस्त बारह बजे भी व्यस्त ।
थक हार कर उसने उसके माँ के फ़ोन लगाया वो भी व्यस्त
थी। निखिल  समझ गया। उसने फोन करना बंद कर दिया साढ़े
बारह के आसपास उसने कॉल किया। बेहद थका और ऊबा
लग रहा था। किसी अनजान डर से डर के निखिल  ने बिना देर
किए उसे अपने पास बुला लिया।
8 घण्टे पहले जिसके पास भर होने से वो खुद को महफूज
समझता था अभी बेबस कटे हुए पेड़ की तरह लग रहा था।
मिलते ही वो उससे लिपट के सिसकने लगा," निखिल
हम भागकर शादी कर लेंगे। जेंडर  का कोई मतलब नही
होता ,
Love dosent know gender....
एकाध साल बाद मम्मी पापा मान जाएंगे।
निखिल ने उसे खुद से भींच लिया। वो बच्चे की तरह सिमटता
चला गया। प्यार  की खासियत होती है, माँ बनने के लिए
उसे बच्चे और उम्र की आवश्यकता नही होती है। बस
परिस्थितियाँ होनी चाहिए वो अपने पिता की भी माँ बन
सकता है। और निखिल  तो माँ के जाने के बाद से ही अपने टूटे
हुए पापा की माँ बन गया था
आज भी वो माँ बन गई अपने प्रेम की और वो बच्चों की तरह
लिपट के उससे रोता रहा और वो उसके बालों को सहलाता
रहा उसे जिंदगी की हकीकत समझाता रहा। माँ बाप की
अहमियत बताता रहा। वो जानता था माँ के होने के मायने
क्या हैं।
उसने खुद से शादी को मना कर दिया। वो जिद करता रहा
वो उसे निष्ठरता से ऐसे समझाता रहा जैसे उनका इश्क़ कभी
शादी के लिए बना ही न हो।
सुबह हो गई दोनो सो गए।निखिल ने उसे सहज कर दिया।
कल होके उन्हें घर निकलना था। दोपहर को वो होस्टल चला
आया ।पूरी पैकिंग बाकी थी। रात भर पैकिंग करता रहा सुबह
4 बजे सोया मगर आठ बजे उसका फ़ोन आ गया स्टेशन आने
के लिए। उसका जगने का मूड नही था पर निखिल  की बातें वो
काट नही सकता था।

दस बजने में दस मिनट बाकी थे वो भागते हुए प्लेटफार्म
आया । वो बोगी के बाहर खड़े उसका इंतजार कर रहा था।
दोनो साथ बैठ गए। रास्ते भर बीते कल की बात होती रही।
वो आगे के बारे में कुछ सुनना नही चाहता था और वो सुनाना
नही चाहता थी। बारह घण्टे के सफर में दोनों पुरानी यादों को
जिंदा करते रहे। वो चाहता था एक और कोशिश करना मगर निखिल ने साफ मना कर दिया। अगली सुबह दोनों गंतव्य पे
आ गये थे। स्टेशन से उतरते वक्त निखिल  ने अपना अपना पैंडेंट
उतारकर उसके गले में डाल दिया। उसने भी अपना ब्रेसलेट
खोल कर उसके हाथों में डाल दिया।निखिल चाहता था एक
बार उसके बाहों में जकड़ जाए। वो पकड़ भी जाता स्टेशन
पर खड़े तमाम लोगों की परवाह किये बगैर, पर उन लोगों में
उसके पापा भी थे। वो चुपचाप बाहर खड़े कार में आकर बैठ गया.....

रात के दस बज रहे थे रेडियो पे RJ सायमा ने पुरानी जीन्स
में लता मंगेशकर का गाना लगाया हुआ था......"हम भूल गए
रे हर बात मगर तेरा प्यार नही भूले" वो धुआँ धुआँ होने लगा
पापा सवाल पे सवाल पूछ जा रहे थे वो बस  हाँ किया और आँख बंद कर ली...
उस के हाथ कस कर ब्रेशलेट को पकड़े हुये थे फिर पकड़ ढीली हुई निखिल जा चुका था  हमेशा के लिए.....

दोस्त को आने का मैसेज कर विकास वहीं स्टेशन के खाली
पड़े बेंच पर बैठ गया था। विकास ने गले मे पड़े पेंडेंट को चूमा और वही आंखें बंद कर दी दोस्त आ चुके थे  विकास के
वो उसे जगा रहे थे पर वो नहीं जगा  उस  वक्त उसके हाथ
से घड़ी गिर गयी।
शोर में शायद छन की आवाज दब गई या
इस बार घड़ी बेमतलब की छन करना नहीं चाहती थी।

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