नीली आंखों वाला

सर्दी की रात थी में अपना दो बैग लिए कपकपी के साथ
लखनऊ स्टेशन पर बैठा था। आँखे हर वक्त कलाई में बंद घड़ी
के ओर देख रही थी । चुकी ट्रैन बहुत लेट थी मैं बहुत बेबस ।
होता जा रहा था सभी ट्रेन डिले होती जा रही थी तेज कुहरे के
वजह से। वक्त था जो कटने के नाम ही नहीं ले रहा था और
ऊपर से मेरा मोबाइल वो भी डिस्चार्ज पड़ा था।

मैं बिल्कुल बोर होता जा रहा था और ऊपर से ये ठंडी हवाएं
मुझे नींद भी नहीं आने दे रही।
मैं अब बिल्कुल शांत अपने कोर्ट में हाथ को डाले बैठा और
किसी सोच में मनमुग्ध था।
अचानक पीछे से आवाज आई..

एक्सक्यूज मी!!
आवाज ऐसी की मानो कोई कोयल भोर की पहली राग मुझे
सुना रही है।

मैं पीछे मुड़ा और देखा एक लड़का काले रंग की जैकट में,
हाथ में मोबाइल फ़ोन लिए और गले में हेडफोन लगाए खड़ा
था
में जैसे ही उसे देखा बस देखता ही रह गया।
मानो की मेरा वक्त वही थम गया हो। मैं बस उसे आँखे फाड़े
देखता रह गया और वो मुझे।
वो अपना एक लाल रंग का बैग लिए मेरे करीब आया मैं अब
भी उसे देखता जा रहा। तभी उस लड़का ने कहा

क्या दिल्ली जाने वाली ट्रेन नहीं आ रही है?

मैं- हां जी यही आ रही है ।
दोबारा..
क्या आप दिल्ली जा रहे हो
मैं- हाँ जी।
और आप को कहा जाना है

लड़का- मुझे भी दिल्ली जाना है।
लड़का- पर मेरी एक प्रॉब्लम है। मैंने कहा क्या? बताइये

लड़का मेरा कन्फर्म टिकट नहीं है। मेरा टिकट किसी और
दिन था पर किसी जरूरी काम से मुझे आज ही जाना पड़
रहा है। इसलिए मेरे पास वेटिंग टिकट है।
क्या मैं आप के साथ बैठ सकता हूं?
मैं -जी बिल्कुल ।।

और ऐसे ही बात आगे बढ़ी हम एक दूसरे के साथ स्टेशन पे
बैठ गए
हम एक दूसरे से बाते करने लगे। तभी उसने पूछा

आप का नाम क्या है

मैं अमर

और आप का क्या नाम है मैंने पूछा
वो हल्का सा मुस्कुराया और बोला नीलांशु
पूरा नाम ' नीलांशु चतुर्वेदी

उसका नाम उसकी आँखों से बिल्कुल मिलता जुलता था।
नीली आँखों वाला नीलींशु चतुर्वेदी
उसकी आँखें बिल्कुल चमकदार और नीली थी।
मानो की समुद्र के नीले पानी में सूरज की किरण चमक रही

फिर हम एक दूसरे से बाते करने लगे। घंटे बीत गए और कुछ
पता भी नहीं चला।

अचानक हार्न बाजी ये हार्न हमारे ट्रेन की थी। हमारी ट्रेन
प्लेटफार्म 2 पर आकर लग गई।

घंटो बाद ट्रेन आई थी तो जैसे ट्रैन लगी हमने अपना अपना
सामान लिया और जाकर ट्रेन में बैठ गए।

चुकी मेरा कन्फर्म सीट था और नीलांशु का वेटिंग तो नीलांशु
भी मेरे सीट पे बैठ गया। हम दोनों एक दूसरे के साथ बैठ गए।
और फिर बातें स्टार्ट की।

मानो बात खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी।

बातो बातो में मैन पूछा नीलांशु तुम दिल्ली में क्या करते हो

नीलांशु - लॉ की स्टडी कर रहा हुं।
और तुम

मैं- दिल्ली यूनिवर्सिटी में अभी पढ़ रहा हु।

बातो बातो में वक्त का पता भी नही चला और वक्त ज्यादा हो
गया। अब पलके धीरे धीरे झपकी मारने लगी।

नींद जोरो से आने लगी।

तभी नीलांशु ने कहा
अमर मैं आलू पराठा लाया हुं। क्या मेरे हाथ का बना आलू
पराठा खाना पसंद करोगे?

मैं- बिल्कुल वकील साहब
महज कुछ ही घंटों में हम दोनों एक-दूसरे को ज्यादा जान गए।
थे और दोस्त भी बन गए।

तभी उसने अपना बैग नीचे से उठाया और पराठा निकाला
हमने पराठा खाया।

वाओ नीलींशु अच्छे कुक हो । बहुत ही स्वादिष्ट था मजा
आया खाकर।। अब नींद और जोरो से आने लगी डिनर के
बाद । और ऊपर से ये ठंडी हवा ।

तभी मैने कहा नीलांशु अब हमें सो लेना चाहिए।
नीलांशु- हा अब मुझे भी बहुत नींद आ रही । लेकिन इनसब
के बीच सबसे बड़ा प्रॉब्लम था कि कैसे सोये! मैं अपने आप
को अंकफ्टेबल महसूस कर रहा था। मैं ये सोच रहा था कि
वो भी ऐसा लड़का जो मुझे पिछले कुछ घंटो से बस जान
रहा है। शायद वो न सोये।
तभी मैंने कहा नीलांशु  तुम सो लो और मैं बैठ कर ही सो
जाता हूँ।
नीलांशु नही यार तुम भी सीट पे सो लो हम दोनों एक दूसरे
के अपोजिट सो जाते हैं। कोई प्रॉब्लम नहीं होगा।

पर मेरे लिए ये थोड़ा अजीब था। बरहाल मैं जैसे तैसे करके
सो गया

सुबह हुई हम ऊठे, मैं तो वैसे भी सही से सोया नही था।
हम फिर बातों में उलझ गए। ये मेरे ज़िन्दगी का सबसे
खूबसूरत सफर था नीलांशु के साथ।

मन में बस यही चल रहा था कि इस सुबह की कभी शाम ना
हो ।

बातो बातो में हम न जाने कब नई दिल्ली स्टेशन आ गए पता
भी नहीं चला। अब मुझे थोड़ा अजीब सा फील हुआ दिल्ली
पहुचकर जो पहले कभी नहीं हुआ था।
पहली बार मैं अपनी मंजिल पे पहुचकर अच्छा नहीं लग रहा
था दिल जोरो से धड़क रहा था। ये सब नीलांशु चतुर्वेदी के
लिए था मुझे उससे बिछड़ने का गम था और मन ही मन में मैं ये
सोच रहा था कि काश दिल्ली थोड़ी और दूर होती।

तभी आवाज आई।
हेलो मिस्टर उतरना नही है क्या
मैं हा हा बिल्कुल उतरना है फिर मैंने अपना बैग लिया और
हैम दोनों प्लेटफार्म पे आ गए।
थोड़ी बाते की । नीलांशु के मोबाइल पे बार बार कॉल आ
रहा था। जो उसका फ्रेंड का था वो उसे प्लेटफॉर्म के बाहर
इंतज़ार कर रहा था। मैंने भी कहा अब हमें चलना चाहिए।

हमने एक-दूसरे को ध्यान से देखा और फिर चल दिये।

नीलांशु कुछ 3-4 कदम आगे ही बढा थी कि मैं खुद को रोक
न पाया और आवाज दी

वकील साहब!
अब कब मुलाकात होगी।
वो पीछे मुड़ा और हल्की सी स्माइल कि कुछ देर हसा और
फिर हाथ में बैग लिए मेरे तरफ बढ़ गया।
मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था अब नीलांशु चतुर्वेदी मेरे
बिल्कुल करीब थी।

उसने अपने हाथों से बैग छोड़ दिया और मेरे बिल्कुल समीप
हो गया। अब मेरा दिल बुलेट के की रफ्तार से धड़कने लगा।

उसने मेरे आखो में देखा और हल्के स्माइल के साथ मुझे
अपने गले लगा लिया।

अब मेरे दिल की रफ्तार उसके दिल से मिलकर दोगुना हो
गया था। मानो दुनिया का सारा सुख नीलांशु के बाहो में था।
गले लगाकर नीलांशु ने मेरे कान में कहा...

इसी शहर में हु ढूढ़ लेना इंतज़ार रहेगा तुम्हारा..
इस बार फिर दिल जोरो से धड़का। और नीलांशु चला गई।

अब मुझे कही न कही प्यार का सिग्नल मिल गया था।
मैं बहुत खुश था। मैंने भी अपना बैग लिया और मेट्रो के लिए
निकल गया। इस बार दिल्ली में मुझे रहने की खास वजह
मिल गई थी।
नीली आँखों वाला "नीलांशु चतुर्वेदी

जिसे मैंने मन ही मन अपना मान चुका था। अब बस यही
चाह थी कि नीलांशु को ढूंढना है और उसे अपना हाल-ए
दिल बया करना है।

Comments

Post a Comment