आदित्य और सांझ

"सारा सामान पैक हो गया ना देख लो कुछ छूटा तो नहीं "दूसरे कमरे से माँ ज़ोर से चिल्लाई......😊😊😊😊
इतनी ज़ोर से कि फुल वॉल्यूम पर बजते हेडफोन को भी अपनी काबिलियत पे शर्मिंदा होना पड़ा.....
मैं फोन कि दुनिया से बाहर निकलकर अनमने ढंग से एक बार फ़िर से सब कमरों की तलाशी लेने लगा......😊😊😊😊😊
आज मै बहुत खुश था हम नए घर में शिफ्ट हो रहे थे और इस पुराने खंडहर हो चुके घर से छुटकारा मिलने वाला था...😊😊😊😊
मैं जानता था माँ ने सब कुछ ध्यान से पैक कर लिया होगा लेकिन मां चाहती थी मैं एक बार फिर अच्छे से देख लें और मैं मन ही मन में मां पे झल्ला रहा था......😤😤😤
मै फिर से जल्दी जल्दी सब कमरों की तलाशी लेने लगा स्टोररूम में मेरी स्कूल वाली पुरानी किताबें कापियां जो पता नहीं क्यों अब तक सहेज कर रखी गई थी जबकि अब तक डिग्री कॉलेज ख़तम किए भी एक साल हो चुका है, दादाजी का बक्शा सालों पुराने कपड़े स्कूल का बैग मेरे लैपटॉप का कार्डबोर्ड का डब्बा और वो सब सामान जो हम छोड़कर जा रहे थे भरा पड़ा था......
मैं वहीं से चिल्लाया" मां सब हो गया, कुछ नहीं छूटा......"
मै बोलते बोलते अचानक रुक गया मेरी स्कूल वाली एक कॉपी जो अधखुली पड़ी थी उसपे अंजानी लिखावट में कुछ लिखा था.....
मैंने कापी पर जमी धूल झाड़ी और उस पन्ने पर लिखे अल्फाज़ पढ़ने की कोशिश करने लगा...... आखिरी लाइन थी तुम्हारा सांझ......😘😘❤️
मेरे अतीत के सारे पन्ने एक एक करके मेरे सामने खुलने लगे........
मेरे नए स्कूल का पहला दिन था जब मै उससे मिला था.....
सहपाठी से कब दोस्त बन गए हम पता ही लगा। सांझ था ही ऐसा चुलबुला शरारती बातूनी अपार ऊर्जा से भरी हुआ..... 😘😘
उसे ठहराह पसंद था, ज़रा भी नहीं  बेहद आकर्षक, नैन नक्श तीखे तराशे हुए रखे जैसे हरदम कोई सवाल पूछ रहा हो जो देखता सिर्फ देखता नहीं रह जाता था बल्कि उसका हो जाता था......😘😘😘
यूं तो सांझ को जानता था मै, लेकिन सदा एक पहेली ऐसी लगा मुझे मानो उसकी ज़िन्दगी कोई खुली किताब सी हो और किसी ऐसी लिखावट मे लिखी गई हो जिसे मै पढ़ ना सकू......😘😘😘
वो स्कूल में सबका चहेता था दोस्तों का हीरो टीचर्स की फेवरेट और स्कूल की बैडमिंटन टीम की जान मनमौजी लड़का था वो सबको सबकुछ मालूम था उसके बारे में बोलता जो इतना था....... 😘😘😘
उसे उसके चाचा चाची ने पाला था मै उसे कभी समझ नहीं पाता था ना जाने क्या रहस्य था उसमें मै कहता था कि तुम्हारा राज़ एक दिन पता करके रहूंगा वो मुस्कुराकर कहता.......
                "अदित्य मै नदी हूँ सिवा पानी के कुछ नहीं मिलेगा जितना गहरा खोदोगे इतना ज्यादा पानी पाओगे मोती सागर में मिलते हैं, और नदियों में सिर्फ रेता......." 😘😘😘😘
एक दिन लंच में उसने मुझे लाइब्रेरी की तरफ जाते देख क्या लिया ना जाने कितने नए नाम दे डाले उसने, पढ़ाई, घिस्सू, मास्टर साहब और जाने क्या क्या........🤣🤣🤣
एक दिन गोल फ्रेम का बड़ा सा चस्मा लगा के आया मै हस दिया सिर झुकाकर हंसकर धीरे से बोली ओल्ड फैशन है ना"🤣🤣🤣
मैंने सोचा चांद कभी ओल्ड पैशन हो सकता है, बादलों को खूबसूरत ही लगता है.... 😘
ब्रेक में कैंटीन में मेरे हाथ की रेखाएं देखने लगा उसके हिसाब से मेरा प्यार कोई और ब्याह किसी और से....... 
मैंने कहा तुम्हारा हाथ देखू तो उसने कसकर मुट्ठी बंद कर ली नहीं अदित्य मेरे हाथ में कोई लकीर नहीं सब प्यार गया पानी में.....
कभी कभी लगता वो बस मायामृग है जिसे हर कोई पाने को भटकता है दीवाना बना फिरता है। जबकि वास्तव में उसका अस्तित्व ही नहीं है वो कोई भ्रम है........
तभी उसकी हसी मुझे वापस खीच लाती मै उसको वहीं पाता अपनी बड़ी सी हसी के साथ वो सब से कहता फिरता कि उसपर वक्त ना बर्बाद करें वो किसी की नहीं हो सकता........😘😘
वक्त तेजी गुजरता गया और कब स्कूल ख़तम होने के दिन आ गए पता ही नहीं चला हम दोनों की क्लास भी वो कॉमर्स पढ़ रहा था और मै मैथ्स पर ना तो सांझ बदला था ना हमारी दोस्ती........
वो मुझसे कहता 'हम साथ ही पढ़ेंगे एक ही कॉलेज में मैं उसे छेड़ता, " तम्हे कबसे इंजीनियरिंग अच्छी लगने लगी मैथ्स का नाम सुनते ही नानी याद आती है तुमको । वो चिढ़कर अपनी कोहनी मेरी पीठ पर जोर से मारकर भाग जाता......🤣🤣🤣
आख़िरी हफ्ता था अब मै थोड़ा बिजी रहने लगा था स्कूल के बोर्ड एग्जाम, प्रैक्टिकल, लैब, इंजीनियरिंग एस की तैयारी इन सबके बीच किसी और चीज़ के लिए वक्त निकालना बहुत मुश्किल हो गया था.....
आज आखिरी दिन था और आज के बाद हम शायद रिजल्ट वाले दिन ही मिल पायें,हमारा बोर्ड एग्जाम का सेंटर अलग अलग था....
लंच में मैं क्लास की पीछे वाली बेंच पर बैठा आरएस अग्रवाल की बुक से सवाल हल कर रहा था अजीब सी ख़ामोशी थी क्लास में, शान्त थे......
कोई स्कूल का आखिरी दिन होने की खुशी मनाने तो कोई सबसे बिछड़ने का ग़म बांटने......      
                 "अरे जनाब किताबों के बाहर भी दुनिया है।" खामोशी को चीरती भी जानी पहचानी आवाज़ गूंजी मैंने सिर उठाया सामने सांझ खड़ा था अपनी लम्बी सी आकर्षक मुस्कान के साथ मैंने थोड़ा संजीदा बनने की कोशिश करते हुए धीरे से गहरी आवाज़ में कहा सपनों को पाने की कोशिश कर रहा हूं क्या तुम्हे अपने सपने टूटने से डर नहीं लगता।
" थोड़ी देर के लिए फिर से वही खामोशी छा गई.....
वो मेरी तरफ अपनी बड़ी बड़ी आंखों से देखता रहा जैसे मन ही मन पूछ रही हो कि तुम्हारे सपनों मेंरे लिए कोई जगह है कि नहीं.......
पल भर में ही उसकी वही हंसी वापस गूंज उठी लगता है साहब ने कल रात कोई फिलोसॉफी की किताब पढ़ ली ये बोलकर बेंच पर रखी नोटबुक लेबर तेज़ी से अपनी क्लास की ओर भाग गया........😊😊😊
मैं फिर से अपनी किताब खो गया। छुट्टी होते ही वो वो नोटबुक वापस दे गया.....
मै गुस्सा था उसे से और बहुत कुछ बताना और पूछना भी पर वो तेज़ी से अपनी स्कूल बस में चढ़ गया.........
पीछे रह गया मै अपने बहुत से सवालों के साथ। एग्जाम बीतते देर कहां लगती है......
रिजल्ट वाला दिन भी आ गया और हमारे मिलने का भी पर वो नहीं आया उसके क्लास के दोस्त से पूछा तो किसी को कुछ भी खबर नहीं थी उसके घर का पता मुझे मालूम नहीं था.......
नंबर लेने की मैंने कभी ज़रूरत ही महसूस नहीं की थी.......
मैंने अगले कुछ दिनों तक लगातार उसको कोसता रहा । " मिलने दो कमीने को, फिर बताता हूं उनको, दिखावे की दोस्ती " मै मन ही मन सोचता।
एक एक करके एक महीना गुजर गया और उसकी कोई खोज खबर नहीं कभी कभी एक अनजाने १ की भावना भी आती भीतर पर पल भर में ही मै दिल को समझा लेता.....
"भला उसे कुछ सकता शैतान को क्या हो सकता है, शैतान की चाचा है........"
दिन बीतते गए मुझे अपने मनचाहे इंजीनियरिंग कॉलेज दाखिला मिल गया था मैं उसे भूलने लगा था मैंने खुद को समझा लिया था कि शायद उसके दिल में मेरे लिए कुछ था ही नहीं, या फिर कोई नया दोस्त मिल गया होगा........😔😔😔😔😔😔😔😔😔😔😔😔😔
पर अतीत को ना साथ ले जाना आसान होता है और ना पीछे छोड़ देना और आज वही अतीत मेरे सामने या ख़त रूप में जो शायद उसने स्कूल के आखिरी दिन ही लिखा था.......
मै उसके ख्यालो से बाहर वर्तमान में आ गया और पन्ने पर लिखे एक एक अल्फ़ाज़ को ध्यान से पढ़ने लगा...........
             डियर आदित्य:❤️
तुम पूछ रहे थे ना "मुझे सपनों को टूटने से डर नहीं लगता " मुझे सपनों से नहीं, अपनी सच्चाई से डर लगता.......😔😔😔
सांझ जिसे हर कोई बस चमकता समझता है इसका बस एक ही हिस्सा दिखता है दुनिया को, एक स्याह हिस्सा भी है जिसे या तो दुनिया देखा नहीं चाहती या शायद सांझ खुद नहीं दिखाना चाहता.....😔😔😔
तुम हमेशा मेरे बारे में और जानना चाहते थे। तुम मेरे बारे में शायद तरस खाओ मुझ पर, पर राज़ को राज़ ही रहने दो बस इतना जान लो कि मेरा जन्म इस शहर की सबसे गंदी और बदनाम गली में हुआ है......😔😔😔
तुम अदित्य हो और मैं सांझ मैं कितना ही खूबसूरत कर्मों ना हो पर मेरे बाद आता तो अंधेरा ही है.....
जो अकेलापन मैंने महसूस किया है उसका
साया भी तुम पर नहीं पड़ने देना चाहता......
जब तुम मुझे मिले तो लगा जैसे लगातार बारिश के बाद गुनगुनी धूप मिल गई हो मुझे पर मै उस शाम की तरह हूं जिसको ना दिन नसीब है ना रात.......
मै एक नदी हूँ और तुम पंछी मै उड़ना नहीं जानता और तुम तैरना पर शायद खुद में पड़ती तुम्हारी परछाई के सहारे ही जी लूंगा मै तुम्हारे सपनों के बीच एक ज़ंजीर नहीं बनना चाहता......
मुझे स्कॉलरशिप मिल गई है एक बड़े से कॉलेज से ग्रेजुएशन के लिए तुम्हें पहले नहीं बताया सरप्राइज देना चाहता था.....
पर अब यही खत जरिया बचा है कि तुमसे कुछ बात कर सके.......
शायद तुम जिंदगी भर मुझे माफ न कर सको, पर मै जा रहा हूं यहां से हमेशा के लिए तुम्हारी यादों के साथ मै तुम्हारी राधा ना बन पाए तो क्या मीरा बनकर ही रह लूंगा.....
               तुम्हारा सांझ........
😢😢😢😢😢😢😢😢😢
मेरी आंखो के सामने अंधेरा सा छाने लगा उस खत के बोझ से मेरे हाथ ही मेरा दिल भी कांप रहा था.....
स्टोररूम की उन सूनी दीवारों पर उसकी वही लम्बी मुस्कान दिखाई दे रही थी हेडफोन में अब भी राहत फतेह अली खान साहब की आवाज़ में ग़ज़ल गूंज रही थी "मोहब्बत भी ज़रूरी थी, बिछड़ना भी जरूरी था.....😭😭😭😭😭😭😭😭😭😭😭

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